अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर सात अक्टूबर को माता पार्वती की सवारी निकलेगी। विजयादशमी पर 15 अक्टूबर को भगवान महाकाल शमी वृक्ष की पूजा करने नए शहर फ्रीगंज आएंगे। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की परंपरा में अश्विन शुक्ल पक्ष में निकलने वाली ये दोनों सवारियां विशेष हैं। साल में एक ही बार माता पार्वती नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं और भगवान महाकाल भी सालभर में एक ही बार नए शहर में भक्तों का हाल जानने आते हैं।
ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में अश्विन मास में भगवान महाकाल व माता पार्वती की सवारी निकालने की परंपरा चली आ रही है। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा पर माता पार्वती चांदी की पालकी में सवार होकर सांझी विसर्जित करने मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर पहुंचती हैं। पुजारी शिप्रा जल से माता पार्वती का अभिषेक और पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद सवारी पुन: मंदिर की ओर रवाना होती है। उमा माता की सवारी में पालकी में माता की रजत मूर्ति को विराजित किया जाता है। साथ ही गरुड़ पर उमा माता की पीतल की मूर्ति तथा नंदी पर भगवान महाकाल मनमहेश रूप में सवार होकर निकलते हैं। शाम चार बजे महाकाल मंदिर से सवारी नगर भ्रमण के लिए रवाना होती है।
इसलिए करते हैं शमी वृक्ष की पूजा
लौकिक जगत में भगवान महाकाल को अवंतिका का राजा माना गया है। राजवंश परंपरा में राजा महाराजा सर्वत्र विजय की कामना से विजयादशमी पर माता जया विजया, अपराजिता तथा शमी वृक्ष का पूजन करते थे। उज्जैन में आज भी यह परंपरा चली आ रही है। दशहरा पर उज्जैन के राजा महाकाल शमी वृक्ष का पूजन करने फ्रीगंज स्थित दशहरा मैदान आते हैं। यहां भगवान की साक्षी में कलेक्टर शमी वृक्ष तथा भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दृश्य को देखने के लिए दशहरा मैदान पर सैकड़ों श्रद्धालु उमड़ते हैं। नए शहर में सवारी का भव्य स्वागत कर आतिशबाजी भी की जाती है। महाकाल मंदिर से शाम चार बजे दशहरा मैदान के लिए भगवान महाकाल की सवारी रवाना होगी।
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