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भारतीय पायलट ने कहा- चीन में हमें शक की नजरों से देखते हैं, प्लेन से उतरने भी नहीं देते

मुंबई. (कुमुद दास) दुनियाभर के देशों में इन दिनों लॉकडाउन है। अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल पर प्रतिबंध है। ऐेसी स्थिति में भी कुछ पॉयलट रेस्क्यू अभियान, दवाइयां और जरूरी सामग्री अन्य देशों में पहुंचाने में जुटे हुए हैं।
ऐसी ही 20 से ज्यादा फ्लाइट ले जा चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह धालीवाल ने बताया कि शंघाई की उड़ानों में सबसे ज्यादा समय लगता हैं। इसके बावजूद चीन पहुंचने पर वहां के लोगों का व्यवहार रूखा ही रहता है। उन्हें लगता है कि उनका देश तो महामारी से मुक्त हो चुका है। ऐसे में वे लोग विदेश से आने वाले हर शख्स को शक की निगाह से देखते हैं। उन्हें अंदेशा रहता है कि कहीं बाहर से आने वाला शख्स वायरस का संक्रमण लेकर तो नहीं आ रहा।

हमें प्लेन से बाहर आने की इजाजत नहीं होती- धालीवाल

कैप्टन धालीवाल ने बताया कि वे 29 मार्च को ईरान से 136 लोगों को लेकर आए थे। इससे पहले वे चीन, खाड़ी देशों के अलावा ढाका, यांगून और मालदीव तक रिलीफ फ्लाइट्स ले जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि जब भी हमारी फ्लाइट शंघाई एयरपोर्ट पर उतरती है, तो सिर्फ एक कमर्शियल स्टाफ ही दस्तावेजों का लेन-देन करता है। हमें प्लेन से बाहर आने की इजाजत नहीं होती।

वुहान में इन दिनों सड़कें सूनी पड़ी रहती हैं- धालीवाल

वुहान के बारे में धालीवाल बताते हैं कि शंघाई जाते वक्त वुहान के ऊपर से ही गुजरते हैं, वहां पर चीन के अन्य मेट्रो शहरों की तुलना में ज्यादा ऊंची इमारतें हैं। पर इन दिनों वहां पर कोई चहल-पहल नहीं दिखती। सड़कें भी सूनी पड़ी रहती हैं।

धालीवाल ने कहा- मेन रुट से अलग खड़े होते हैं प्लेन

इसके अलावा चीनी एयरपोर्ट स्टाफ उन्हीं की भाषा में बात करते हैं। इसलिए, जब कभी भी विदेश से फ्लाइट आती है तो उसे मेन रूट से अलग खड़े करने के लिए कहा जाता है ताकि विदेशी भाषाएं जानने वाला स्टाफ उनके साथ चर्चा कर सके। स्पाइसजेट से जुड़े कैप्टन धालीवाल के मुताबिक, उनकी पत्नी डॉक्टर हैं, वो अक्सर सुरक्षा टिप्स देती रहती हैं। धालीवाल इन्हीं टिप्स को याद रखते हुए सफर करते हैं।

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